Haryana: भाजपा की केंद्र सरकार किसानों को उर्वरकों पर दी जा रही सब्सिडी को खत्म करने का रच रही है षड्यंत्र: अभय सिंह चौटाला



Haryana News: चंडीगढ़, 28 जुलाई: इनेलो के प्रधान महासचिव एवं ऐलनाबाद के विधायक अभय सिंह चौटाला ने कहा कि भाजपा सरकार लगातार किसान विरोधी फैसले ले रही है। इसी कड़ी में भाजपा सरकार ने यूरिया का एक बैग जिसमें नाईट्रोजन की मात्रा 46 प्रतिशत होती थी उसे घटा कर 37 प्रतिशत कर दिया है और उसकी जगह 17 प्रतिशत सल्फर डाल कर सल्फर लेपित यूरिया बना दिया है। 

अभय चौटाला ने कहा कि अनाज फसलों जैसे गेहूं, धान और मक्का आदि के लिए एक एकड़ में 60-70 किलो नाइट्रोजन डालनी पड़ती है। पहले यूरिया के एक बैग में 46 प्रतिशत नाईट्रोजन मिलती थी जिसमें 23 किलो नाईट्रोजन होती थी, अब इस नई सल्फर लेपित यूरिया में नाईट्रोजन की मात्रा 37 प्रतिशत कर दी गई है जिससे एक बैग में अब साढे 18 किलो नाईट्रोजन ही मिलेगी साथ में 17 प्रतिशत सल्फर होगी। जिसका मतलब है कि पहले एक एकड़ में जहां 3 बैग यूरिया के लगते थे वहां अब किसानों को 4 बैग खरीदने पड़ेंगे यानि एक बैग प्रति एकड़ का अतिरिक्त बोझ अनावश्यक रूप से किसानों पर पड़ेगा। इसके साथ ही सभी किसानों पर सल्फर उर्वरकों को अनावश्यक थोप दिया गया है। वहीं सल्फर पोषक तत्व की केवल तिलहन (सरसों, सोयाबीन, मूंगफली इत्यादि) वगैरह कुछ फसलों में ही आवश्यकता होती है और किसी भी फसल के लिए सल्फर की कोई आवश्यकता नहीं होती। इससे पहले भाजपा सरकार ने खाद का 50 किलो का बैग 45 किलो का कर दिया था जिसके कारण किसानों को 5 किलो का घाटा सहन करना पड़ा था। अब प्रति बैग 5 किलो नाईट्रोजन कम देने से किसानों पर दोहरी मार मारी गई है। इसके साथ भाजपा सरकार ने किसानों के लिए नैनो यूरिया खरीदना अनिवार्य कर दिया था जबकि नैनो यूरिया असल में सिर्फ फौका पानी मात्र होता है जिसमें सिर्फ 4 प्रतिशत ही नाईट्रोजन होता है और किसानों के किसी भी काम का नहीं है।  

इनेलो नेता ने कहा कि भाजपा सरकार ऐसा करके किसानों को उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करने का षड्यंत्र रच रही है। असल में सच्चाई यह है कि केंद्र की सरकार ने भारत देश में कभी यूरिया फर्टिलाईजर की प्रोडक्शन बढ़ाने पर ध्यान ही नहीं दिया और लगातार यूरिया को इंम्पोर्ट कर रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार देश के बड़े उद्योगपतियों का 15 लाख करोड़ रूपए का बैंक लोन माफ कर सकती है लेकिन जब बात किसानों की आती है तो ऐसे ओछे प्रपंच रचने लगती है।

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