किडनी ट्रांसप्लांट के लिए मृत किडनी डोनर के ब्लड के टाइप को बदल दिया। शोधकर्ताओं की क्रांतिकारी खोज



 

नई दिल्ली. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण खोज में तीन मृत किडनी डोनर के ब्लड के टाइप को सफलतापूर्वक बदल दिया है. ये क्रांतिकारी खोज किडनी ट्रांसप्लांट का इंतजार कराने वालों के लिए एक बड़ी राहत देने वाली खबर है. यह शोध ब्रिटिश जर्नल ऑफ सर्जरी में प्रकाशित होने वाला है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस िडस्कवरी से ट्रांसप्लांट के लिए किडनी की सप्लाई में तेजी आ सकती है. खासकर ऐसे लोगों के लिए, जो खास जातीय समूह के होते हैं, जिनका किडनी के मैच की संभावना काफी कम होती है. बता दें किडनी ट्रांसप्लांट के लिए दो व्यक्तियों की किडनी मैच होना बेहद जरूरी है. जैसे ब्लड ग्रुप ए वाले किसी व्यक्ति की किडनी को ब्लड ग्रुप बी वाले किसी व्यक्ति को ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकता है और न ही इसका विपरीत. लेकिन ब्लड ग्रुप को यूनिवर्सल O में बदलने से अधिक ट्रांसप्लांट हो सकेंगे, क्योंकि इसका इस्तेमाल किसी भी ब्लड ग्रुप वाले लोगों के लिए किया जा सकता है.

प्रोफेसर माइक निकोलसन और पीएचडी छात्र सेरेना मैकमिलन ने एक नॉर्मोथर्मिक परफ्यूजन मशीन का उपयोग किया. एक उपकरण जो मनुष्यों की किडनी से जुड़ता है ताकि भविष्य में उपयोग के लिए इसे बेहतर ढंग से संरक्षित करने के लिए अंग के माध्यम से ऑक्सीजन युक्त ब्लड पास कर सके. कैंब्रिज ऑफ यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक, एंजाइम ने ब्लड टाइप के मार्करों को हटाने के लिए एक कैंची की तरह काम किया, जो किडनी की ब्लड वेसेल्स को रेखांकित करता है, जिसके परिणामस्वरूप अंग सबसे सामान्य ओ ब्लड ग्रुप में बदल जाता है.

छात्रा सेरेना मैकमिलन ने बताया कि जब हमने ह्यूमन किडनी के टिशु के एक टुकड़े पर एंजाइम को लगाया तो देखा कि एंटीजन को हट गए थे. उस वक्त हमारा आत्मविश्वास वास्तव में बढ़ गया था. इसके बाद हमें समझ आ गया कि यह प्रक्रिया संभव है. अब हमारा अगला कदम एंजाइम को पूरी ह्यूमन किडनी पर लगाना था. सेरेना ने आगे बताया, “बी-टाइप ह्यूमन किडनी लेकर और हमारी नॉर्मोथर्मिक परफ्यूजन मशीन का इस्तेमाल कर अंग के माध्यम से एंजाइम को पंप करके, हमने कुछ ही घंटों में देखा कि हमने बी-टाइप किडनी को ओ टाइप में बदल दिया था. यह सोचना बहुत रोमांचक है कि यह डिस्कवरी कितनी सारी जानें बचा सकती है.”

यह खोज जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लोगों के लिए विशेष रूप से प्रभावशाली हो सकती है जो अक्सर व्हाइट पेशेंट की तुलना में ट्रांसप्लांट के लिए एक साल अधिक इंतजार करते हैं. अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों में बी टाइप का रक्त होने की संभावना अधिक होती है और इन आबादी की वर्तमान कम डोनर रेट के साथ किडनी पर्याप्त नहीं होते हैं.

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