अबतक कहानियां तो बहुत मिली लेकिन ऐसी नहीं, किशारी लाल बचपन से क्रिकेट के शौकीन थे


दिल्ली :
ये किशोरी लाल जी हैं.दलित समाज से आते हैं. अपनी पत्नी, दो बेटी और एक बेटे के साथ दिल्ली के अशोक नगर में रहते हैं.किशोरी जी बचपन से क्रिकेट के शौक़ीन थे.अच्छे प्लेयर हुआ करते थे.अपना प्राइवेट क्लब भी शुरू किया था.

पहले डिस्ट्रिक्ट बाद में स्टेट लेवल पर क्रिकेट खेला.लगातार 20 साल तक. भारत का शायद ही कोई ऐसा राज्य हो जहाँ इन्होने क्रिकेट टूर्नामेंट ना खेला हो.बहुत तगड़ी टीम थी इनकी. मॉडर्न स्कूल बाराखंभा रोड में कपिल देव और यशपाल शर्मा के अगेंस्ट में क्रिकेट खेला.


लोग कहते थे-किशोरी क्रिकेट खेलना शानदार सिखाता है.किशोरी जी ने क्रिकेट की कोचिंग देनी शुरू कर दी.250 के करीब बच्चें आते थे.इनके द्वारा ट्रेन्ड किए हुए लड़के स्पोर्ट्स कोटे से कई सरकारी नौकरियों में गए.कुछ PTI टीचर बने. दिल्ली पुलिस में गए.वकील बने.कुछ की नौकरी DDA में हुई


20 साल तक जमकर क्रिकेट खेला.अचानक पिता की मृत्यु हो गई.परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.बीए सेकंड ईयर की पढाई चल रही थी वो बीच में ही रुक गई.तब तक शादी हो गई. कई जिम्मेदारियां आ गई और क्रिकेट हमेशा-हमेशा के लिए छूट गया.. पिता की मृत्यु के बाद घर पर कोई कमाने वाला नहीं था.


किशोरी जी घर के पास ही एक फैक्ट्री में काम करने लगे. महीने के 300 रूपये मिलते थे. सन 2000 में फक्ट्रियां सील हो गई और मजदूरी का काम छूट गया.किशोरी जी की एक लड़का हुआ. नाम पड़ा 'लक्ष्य आनंद' बाद में दो बेटियां भी हुई.किशोरी जी अन-स्किल्ड लेबर की तरह काम करने लगे.


एक हॉस्पिटल में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते थे. कुछ बात हुई तो हॉस्पिटल वाले ने नौकरी से निकाल दिया. कोई स्थाई नौकरी नहीं थी इसलिए काम मिलता-छुटता रहता था.एक प्राइवेट स्कूल में केयर टेकर की नौकरी करने लगे. अभी कोरोना के दौरान स्कूल वालों ने नौकरी से निकाल दिया.


किशोरी जी बताते हैं- 20-22 साल तक मजदूरी का काम किया. 12-12 घंटे तक. बिना कोई छुट्टी लिए. अब उम्र ज्यादा हो जाने के कारण नौकरी मिलनी बंद हो गई.इनसब के बीच ध्यान देने वाली बात यह थी कि किशोरी जी को जो काम करना पड़ा वो किया लेकिन बच्चों की पढाई नहीं रोकी.


हाँ कई बार यह हुआ कि मकान का किराया टाइम से ना दे पाने पर मकान मालिक ने मकान खाली करवा दियाकिशोरी जी का बेटा लक्ष्य बहुत मेहनती और पढ़ने में काफी तेज था.बेटे ने हिम्मत नहीं हारी और बाप ने अपनी कोशिश नहीं छोड़ी.खूब पढ़ाया. बेटा और बेटियां दिल्ली के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे


किशोरी जी का बेटा लक्ष्य बड़ा हो गया था. DTU से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर रहा था. परिवार की जिम्मेदारी समझने लगा. विदेशों में ऑनलाइन ट्यूशन क्लासेज देने लगा. उससे पैसे आने लगे और घर का खर्च चलने लगा.


अभी कुछ दिन पहले की बात है. किशोरी जी अपने दोस्तों के साथ कहीं बैठे थे.एक फोन आया और किशोरी जी रोने लगे.दोस्तों ने पूछा अरे क्या हो गया?तू अभी तो ठीक था अचानक रोने क्यूँ लगा? किशोरी जी बोले मेरा बेटा IFS बन गया.ये वो दिन था जिस दिन से कोशिरी जी के जीवन की कहानी बदल गई.


किशोरी जी बताते हैं- पहले मुंह में ज़ुबान तो थी लेकिन बोलने लायक नहीं थी. आज बोलने लायक है. जो कभी बात नहीं करते थे आज मुझसे बात करते हैं. जो कल तक पूछते नहीं थे आज वो अपनी कार रोक देते हैं.किशोरी जी ने दो घटनाएँ बताई......


शाहदरा सर्कुलर रोड पर मेरा अपना मकान था. मैं और मेरे बड़े भाई साथ रहते थे. अभी मेरी शादी नहीं हुई थी. मेरे बड़े भाई ने उस मकान पर कब्ज़ा कर लिया और मुझे घर से बाहर निकाल दिया. 28 साल बाद बड़े भाई और भतीजे का फोन आया था- ये माकन तुम्हारा है इसे जब चाहे ले लो '


क्योंकि इसी दिन UPSC का रिजल्ट आया था और किशोरी लाल का बेटा लक्ष्य आनंद भारतीय विदेश सेवा का अधिकारी बन गया था.अगले ही पल मेरे साले साहब का फोन आयावही मामा जिसके भांजे का एडमिशन DTU में हो रहा था और कुछ पैसे कम पड़ रहे थे. तो मैंने पैसे के लिए उन्हें फोन किया.


तो लक्ष्य के मामा का कहना था- जब पैसे नहीं,तो इतने महंगे कॉलेज में पढ़ाते ही क्यों हो?#UPSC वाले रिजल्ट के दिन वो मामा कह रहे थे मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है अगर हो सके तो मुझे माफ़ कर देनाकिशोरी जी भावुक होकर कहते हैं- सर ये दिन देखने के लिए हमने क्या- क्या नहीं देखा.


द भारत खबर

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने

विज्ञापन

विज्ञापन